DR DEEPTI GAUR

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लेखनी प्रतियोगिता -05-Sep-2022 कहानी लेखन गुरु शिष्य परंपरा शीर्षक हौसलों की उड़ान

#कहानी लेखन प्रतियोगिता
विषय-  गुरु शिष्य परंपरा 
शीर्षक - "हौसलों की उड़ान"

सरपट दौड़ती ट्रेन से बाहर झाँकते हए, प्रकृति की हरीतिमा को निहारते - निहारते पल्लवी जैसे कहीं खोई-सी जा रही थी। हाल ही में उसकी पोस्टिंग इंदौर के पास एक छोटे से कस्बे में शासकीय कन्या विद्यालय में शिक्षिका के पद पर हुई थी। सुखद स्मृतियों के आलोड़न - विलोड़न के बीच मीठी यादों के अनेक बादल उमड़-घुमड़ रहे थे उसके मस्तिष्क में..... और अचानक ये बादल ठंडी फुहार लेकर उस पर बरस पड़े और पल्लवी खो गई उन शीतल यादों के झोकों में... मस्त-सी हो गई...... स्मृतियों के अनेक चित्र उसके मानस पटल पर लहराने लगे ।
दो आँखों में समूची दुनिया को समेट लेने की चाहत भरे हुए पल्लवी ने नए स्कूल में कक्षा नौंवी में एडमिशन लिया था | मिडिल कक्षा तक पढ़ते पढ़ते हमेशा कक्षा में अव्वल ही रहती थी वह । परन्तु विद्यालय मिडिल तक ही था सो पल्लवी की आगे की पढ़ाई के लिए उसके माता-पिता ने नए स्कूल में दाखिला करा दिया था । कम हाइट, भोली-भाली सूरत, कानों पर लटकती दो गुंथी हुई पतली-पतली चोटियाँ, मन में भरी चंचलता परन्तु फिर भी चेहरे से शान्त और सौम्यता की मूर्ति-सी…...।
पल्लवी शुरू से ही मेधावी थी। पहले दिन ही प्रार्थना सभा में झट से कतार में सबसे आगे खड़ी हो गई | छोटी-सी थी न । चेहरे पर एक हल्की मुस्कान तो उसके सदा ही रहती थी। सभी शिक्षक - शिक्षिकाओं की निगाहों को बरबस ही उसने आकर्षित कर लिया था । कुछ शिक्षकों के होठों पर तो उसे देखकर एक हल्की सी मुस्कान की लहर दौड़ गई थी क्योंकि नवीं कक्षा में प्रवेशित छात्रा कक्षा पाँचवी की छात्रा जैसी लग रही थी । नई किताबें, कॉपियाँ और नए बस्ते के साथ पढ़ने का मज़ा कुछ निराला ही होता है बच्चों के लिए, और उस पर किसी नए स्कूल में दाखिला, जहाँ मित्र-मंडली अभी बनी न हो और नए मित्र बनाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो तो मज़ा और दुगुना हो जाता है बच्चों की नन्हीं दुनिया का | पल्लवी को यूं तो बातें करना बहुत लुभाता था वह पल में दोस्ती भी कर लेती थी परन्तु उसे मंच पर अपने विचारों को अभिव्यक्त करते व्यक्तियों को देखकर वहाँ भी अपने भावों व विचारों को प्रकट करने का मन करता था | 
सोचती थी " कैसे इतने सारे लोगों के सामने बोल लेते होंगे। इनको जरा भी डर नहीं लगता होगा । बोलते- बोलते कहीं कोई गलत शब्द निकल गया तो कित्ते सारे लोग हंसी उड़ाएँगे | पर फिर भी लोग मंच पर कित्ता अच्छा बोल लेते हैं और सब लोग खूब तालियां भी बजाते हैं । काश ! मुझे भी मंच पर बोलना आ जाए...। 
नए स्कूल के रंग में धीरे-धीरे रंगते हुए लगभग एक माह बीत चुका था | तभी एक दिन कक्षा में एक नोटिस आया | 
शर्मा मैडम ने पढ़कर सुनाया - "विद्यालय में जनसंख्या शिक्षा पर आधारित एक क्विज प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। जो छात्राएँ इसमें भाग लेना चाहती हों वे अपने नाम शिखा मैडम के पास लिखवा सकती हैं। विद्यालय से चयनित टीम को जिला स्तर पर भेजा जाएगा |" 
पल्लवी के मन में एक उत्साह की लहर - सी दौड़ गई पर शीघ्र ही शांत हो गई। उसका सामान्य ज्ञान तेज था परन्तु कभी भी उसने सहभागिता नहीं की थी। उसके मन में चल रही उथल पुथल को जैसे मैडम ने भाँप लिया था । 
\\'पल्लवी, इधर आओ तो जरा ।” मैडम ने  पुकारते हुए कहा । 
जी मैम….. \\'पल्लवी ने शांत भाव से उत्तर दिया। 
तुम क्विज में भाग ले रही हो ना, तुम्हारी तो जनरल नॉलेज बहुत अच्छी है।\\' 
माम् ने अत्यंत विश्वासपूर्ण लहजे में कहा ।
 \\'वो मैम…..वो मैम….., पल्लवी कुछ सकुचाई ।
हाँ, हाँ बोलो बेटा । मैम ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा | 
\\'मैम मैंने इससे पहले आज तक कभी कोई प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया। \\'पल्लवी बोली ।
हाँ.. तो…?
\\'मैम, यहाँ तो बहुत बड़ी-बड़ी दीदियां पढ़ती है । कक्षा ग्यारह और बारह की दीदीओं ने भी नाम लिखाया है, और उन्हें तो मुझसे ज्यादा आता है मैं कैसे कर पाऊँगी ? मुझसे न होगा  मैमजी। उनके सामने मैं कैसे बोल पाऊंगी । औऱ मां भी कहती हैं कि लड़कियों को ज़्यादा नहीं बोलना चाहिए । उनको तो शादी करना होता है और घर ही संभालना होता है । इन सब चीजों में टाइम मत बर्बाद किया करो । घर का काम काज सीखो ध्यान से । ऐसा मम्मी बोलती हैं हमको । 
\\'ज्यादा आता होगा मतलब, देखो , पल्लवी प्रतिभा कभी उम्र की मोहताज नहीं होती और मैं तुम्हें पहले दिन से इस विद्यालय में पढ़ा रही हूँ और मैंने पाया है कि तुम बहुत समझदार लड़की हो, होशियार हो और जिंदगी में बहुत कुछ करना चाहती हो। अपने अंदर से लड़का लडक़ी वाले भेदभाव को निकाल दो लड़कियां सब कुछ कर सकती हैं और मैं तुम्हारी मम्मी को भी समझाऊंगी कि आजकल लड़कियां किसी क्षेत्र में पीछे नही है । ये इक्कीसवीं सदी है, केवल चूल्हा चौका ही उनकी ज़िम्मेदारी नहीं, वो घर बाहर सब अच्छे से संभाल रही हैं । उनकी जिम्मेदारी है समाज में कुछ गलत हो रहा हो तो उसे रोकना तभी हमारे पढ़े लिखे होने की उपयोगिता है।" शर्मा मैडम ने उसके अंदर आत्मविश्वास भरते हुए समझाया ।
जी मैम, पर मैंने सुना है कि जब किसी प्रतियोगिता में बोलते हैं न तो हाथ -पैर काँपने - लगते हैं और जुबान लड़खड़ाने लगती है। पल्लवी ने कुछ अनमने ढंग से उत्तर दिया । 
\\'किसने कह दिया है तुमसे ये सब... ?
"वो मैम मेरी एक सहेली ने मुझे बताया था" \\'वही तो पल्लवी…! जो इंसान स्वयं आगे नहीं बढ़ सकता, वह दूसरे को भी कई बार आगे बढ़ने से रोकता है । इसलिए तुम्हारे अंदर गलत बातें भर दी गई है कि तुम कहीं आगे न बढ़ सको । वैसे भी सच्चे दोस्त का फर्ज होता है कि यदि उसमें वह क्षमता नहीं है तो अपने दोस्त की क्षमताओं को पहचानकर उसे आगे बढ़ाए ! वरना दोस्ती कैसी ?"
पल्लवी नें हाँ में सिर हिला दिया । उसे बात कुछ- कुछ समझ में आने लगी ।
\\'तो मैम, फिर मैं लिखवा देती हूँ अपना नाम । अभी तो तैयारी को भी समय है ।\\' पल्लवी ने चहकते हुए कहा ।
हाँ, क्यों नहीं ! शाबास बेटा …..| माम् ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा ।
मैम की आँखें भी खुशी से चमकने लगीं । 
पल्लवी ने घर आकर अपने पापा को सारी बात बताई | वह अपनी हर छोटी-बड़ी बात अपने पापा से शेयर करती थी । तथा वे भी उसे खूब पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते थे। हालांकि उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी । घर का खर्चा भी जैसे तैसे चलता था। तीन बहनों में सबसे बड़ी थी पल्लवी । लेकिन बेटियाँ उनका गौरव थीं। 
"हाँ.. हाँ.. देखना बिट्टू जरूर जीतेगी क्विज में ।" पापा ने अपने पास बैठाते हुए कहा | 
माँ ने अनमने ढंग से कहा," कि इन सब में लगी रहोगी तो घर के काम कब सीखोगी । दूसरे घर जाना है । नाम खराब कराओगी ससुराल में । लड़की को कुछ नहीं सिखाया ।"
पल्लवी रुआंसी हो गई । अगले दिन उसने माम् से कहा कि मेम मुझे अपना नाम वापस लेना है । कहकर सुबक पड़ी । और सारी बातें माम् को बताई । 
मेम बोली-" बेटा ऐसा नहीं कहते, मैं कल तुम्हारे घर आकर तुम्हारे पेरेंट्स से बात करूँगी ।
अगले दिन माम् एक आशा विश्वास के साथ पल्लवी के घर पहुंची और उसकी मम्मी को समझाते हुए बोलीं - देखिए , हमने जो शिक्षा प्राप्त की है हम उसे समाज मे बांट रहे हैं । क्या हमारा घर नही है । लड़कियों को उनकी उड़ान का हौसला हम औरतें ही नही देंगी तो और कौन देगा । हमें हमारी जिम्मेदारी निभाना खूब आता है । यही कारण है कि आज महिलाएं समाज मे कंधे से कंधा मिलाकर साथ चल रही हैं । इनका आकाश हमको ही देना है। हमारा फर्ज है कि हम गलत राह पर जा रहे लड़के लड़कियों को रोकें । यदि वो धूम्रपान करते है तो उनको रोकें टोकें । उनको संस्कार दें । उन्हें बड़ों की इज्जत करना सिखाएं न कि रूढ़िवादी बनकर आगे बढ़ने से रोकें । नारियां समाज में होने वाली घटनाओं को रोकने के लिए अपने बच्चों को संस्कार दें ।" 
माम् की बातें सुनकर पल्लवी की माँ की आंखों से अश्रुधारा बह निकली । और बिटिया को गले से लगा लिया।

शर्मा मैडम ने एक अच्छी शिक्षिका होने का फर्ज अदा किया। एक शिक्षक का फर्ज भी होता है अपने छात्रों में आत्मविश्वास जगाना, उनके अंदर व्याप्त भय को दूर भगाकर साहस के उजाले की ओर ले जाना, समाज के जीवन मूल्यों को सिखाना तभी विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होता है।
पल्लवी के मन में एक आत्मविश्वास-सा भर गया और होठों को दाँतों के बीच दबाते बोली \\'अरे मम्मी। ! कहकर इतराने लगी। अब मुझे पढ़ने दो अब, यदि बातों में लगी रही तो जीतने से रही । " 
उसकी बातें सुनकर मम्मी - पापा दोनों खिलखिलाने लगे ।
आखिर वह दिन आ ही गया जिस दिन प्रतियोगिता आयोजित होनी थी। नन्ही-सी पल्लवी टीम-बी को रिप्रेजेंट कर रही थी। क्विज के प्रश्नों का सिलसिला जारी हो गया | पल्लवी ने अच्छी तैयारी की थी और टीम- बी लीड करती चली गई और विजयी हुई वह खुशी से उछल पड़ी । पल्लवी जिला स्तर के लिए चुनी गई । सबसे पहले अपने जीतने की खुशी बाँटने दौड़कर शर्मा मैडम के पास गई और आँखों में खुशी के आँसू लेकर बोली। 
" थैंक्स वैरी मच माम् | यदि आपने मुझे प्रोत्साहन नहीं दिया होता तो मैं हमेशा यूँ ही एक अनजाने भय से घिरी रहती मुझमें आत्मविश्वास ही नहीं आ पाता ।"
"गॉड ब्लैस माई चाइल्ड | यू विल बी डेफिनेटली विन एट डिस्ट्रिक्ट लेवल " "थैंक्स मैम\\' कहकर वह खिलखिलाती हुई अपनी सहेलियों के पास चली गई अपनी खुशी को बाँटने व दुगुना करने । अब उसे दुगुने उत्साह से अगले पड़ाव की तैयारी में लगना था। वह जुट गई और जिला स्तर पर भी विजेता बन कर आई | स्कूल के शिक्षक शिक्षिकाएँ उस पर गर्व करने लगे। पूरे स्कूल में वह छा गई । 
प्रिंसिपल मैडम ने उसे अपने कक्ष में बुलाया और कहा - "बिटिया रानी, कौन-से स्कूल से आई हो हमारे स्कूल मे !
"मैम\\', फाउंडेशन स्कूल से ।
अच्छा, तुम तो बहुत छोटी-सी, प्यारी-सी बच्ची हो और तुम्हारे अंदर तो बहुत टैलेंट है । तुमने यहाँ एडमिशन लेते ही हमारे स्कूल को एक शानदार उपलब्धि दिलवाई है। शाबास ।" उन्होंने पीठ थपथपाते हुए कहा।
"थैंक यू मैम", मैं बहुत आगे बढ़ना चाहती हूँ और एक शिक्षिका बनना चाहती हूँ।"
 "ग्रेट बेटा! माए गुड विशेज आर ऑलवेज विद यू ।"
अब पल्लवी को विद्यालय में सब जानने, पहचानने लगे थे । प्रार्थना सभा में विद्यालय की छात्राओं को देशभक्ति की शपथ दिलाती | समय बीतता गया । हर उपलब्धि उसे आगे बढ़ने का एक नया हौसला देती थी । पल्लवी एक बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी बालिका थी उसे लेखन का भी शौक था | उसकी लिखी कहानियाँ और कविताएँ विद्यालय की पत्रिका में छपती रहती थी और सब उसकी कला की सराहना करते रहते | उसकी शिक्षिका ने वास्तव में न केवल उसके अंदर आत्मविश्वास जगा दिया था वरन उसे स्व अभिप्रेरित भी बना दिया था। मैडम उसे किताबों की सहायता भी करती रहती थीं। उन्होंने कई कहानियों की किताबें भी पल्लवी को दी थीं।
\\'सुनो पल्लवी, मेरी बेटी का नाम भी पल्लवी है, और वो इस समय डॉक्टरी की पढ़ाई कर रही है । मैडम ने कहा ।
"अच्छा मैम" । चमकती आँखों से पल्लवी बोली। 
"और मैं चाहती हूँ कि तुम भी इसी तरह लगन से पढ़ाई करती रहो और एक दिन अपने लक्ष्य को प्राप्त करो और हमारे शहर का नाम रोशन करो ।"
पल्लवी ध्यानपूर्वक मैडम की बातें सुनती रही और मन-ही-मन संकल्प भी लेती रही कि वो सबकी अपेक्षाओं पर खरी उतरेगी। पल्लवी के मन में उठ रही आकांक्षाएँ हिलोरें ले रही थी। घर में माता-पिता और स्कूल में शिक्षिका के प्रोत्साहन ने उसके अंदर कुछ कर गुजरने की तमन्ना जाग्रत कर दी थी । एक बार एक वाद-विवाद प्रतियोगिता जिसमें उसने भाग लिया था उसका विषय था- " बालिकाओं का विकास समानता के अधिकार के आधार पर ही निर्भर है।" पल्लवी ने विभिन्न तर्क प्रस्तुत करते हुए अपना पक्ष रखा और प्रथम स्थान प्राप्त किया । निर्णायक मंडल के सदस्य उसके ओजस्वी विचारों से अत्यंत प्रभावित हुए। निर्णायक मंडल ने मंच से अपने विचार रखते हुए पल्लवी की वक्तृत्व कला की सराहना की । और कहा कि ,
मंजिलें उन्हीं को मिलती है,जिनके सपनों में जान होती है ।
पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। "
इन पंक्तियों को सुनकर पल्लवी बहुत प्रभावित हुई। वैसे भी जो व्यक्ति जीवन में आगे बढ़ने की तमन्ना रखते हैं वे अच्छे विचारों को आत्मसात कर लेते हैं। वापस घर लौटते समय उसके मन में विचार उठ रहे थे कि हाँ, समानता के अधिकार के आधार पर ही बालिकाओं का विकास निर्भर है, इसीलिए उन्हें शिक्षित किया जाना बहुत जरूरी है। उसने सोचा कि वह भी बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करेगी । और समाज में बच्चों को संस्कारी बनाने और जीवन मूल्यों के प्रति सजगता से समाज मे योगदान देगी ।
निर्णायक मंडल के शब्द \\'हौसलों से उड़ान होती है। बार- बार उसके कानों में गुंजायमान हो रहे थे । समय पंख लगाकर उड़ता चला गया और पल्लवी ने अपनी शिक्षा पूर्ण की । वह प्रतियोगी परीक्षाओं में सम्मिलित होने लगी। आखिर वह दिन आ ही गया जब उसका सपना साकार होने वाला था। वह शिक्षिका के पद पर चयनित हो गई थी । उसने संकल्प लिया था कि जिस प्रकार उसकी शिक्षिका ने उसके व्यक्तित्व को निखारने व मार्गदर्शन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ,उसे जीवन मूल्यों की शिक्षा दी थी, उसी प्रकार वह भी अपनी छात्राओं को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करेगी और बालिकाओं के प्रति समाज में होने वाले दोयम दर्जे के व्यवहार को हतोत्साहित करेगी । आज फिर वह स्कूल जा रही थी परन्तु मन में चंचलता नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी का भाव समेटे हुए । नन्हीं- नन्हीं बालिकाओं को कामयाबी का पाठ पढ़ाने, एक ऊँची उड़ान के लिए तैयार करने का हौसला देने…...।

॥ इति ॥
© स्वरचित , मौलिक
-:रचनाकार:-
डॉ. दीप्ति गौड़ 
शग्वालियर मध्यप्रदेश
(वर्ल्ड रिकॉर्ड पार्टिसिपेंट)
सर्वांगीण दक्षता हेतु राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली की ओर से भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति महामहिम स्व. डॉ. शंकर दयाल शर्मा स्मृति स्वर्ण पदक, विशिष्ट प्रतिभा सम्पन्न शिक्षक के रूप में राज्यपाल अवार्ड से सम्मानित।

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14 Comments

Lajawab 👌

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Sadhna mishra

07-Sep-2022 01:47 PM

Lajawab 👌

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Pratikhya Priyadarshini

06-Sep-2022 09:38 PM

Bahut khoob 💐👍

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